अन्नकूट महोत्सव की शरुआत वल्लभाचार्य के चार शिष्यों द्वारा।

अन्नकूट महोत्सव का सांस्कृतिक महत्व


अन्नकूट का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के शक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, इस दिन मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न सामाग्रियों से भोग लगाया जाता है। यह ब्रज में मुख्य तौर पर मनाया जाने वाला पर्व है। अन्नकूट पर्व पर गाय के गोबर से बने गोवर्धन बनाते हैं, वहां श्रीकृष्ण के सामने गाय, ग्वाल को विधिपूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। इस पर्व को मनाने से व्यक्ति दीर्याघु होता है और निरोगी जीवन की आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही दरिद्रता भी दूर होती है।दीपावली के अगले दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है। इसका आरंभ द्वापर युग से हुआ। ब्रज क्षेत्र का यह विशेष त्योहार है, लेकिन नाथद्वारा का अन्नकूट महोत्सव अपना विशेष महत्व रखता है। वस्तुतः शरद ऋतु के आगमन के साथ ही कार्तिक माह में त्योहारों की झड़ी-सी लग जाती है और छठ पूजन तक यह क्रम सतत रूप से जारी रहता है। अन्नकूट महोत्सव एक महत्वपूर्ण उत्सव होता है, जिसकी शरुआत वल्लभाचार्य के चार शिष्यों द्वारा की गई थी।


इस दिन गाय-बैलों की पूजा करते हैं और गौमाता को मिठाई खिलाकर आरती उतारते हैं. प्रदक्षिणा करते हैं। कहा जाता है कि जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इंद्र का अहंकार चूर कर दिया, तो अंततः श्रीकृष्ण का अवतार जानकर इंद्र ने उनसे क्षमा याचना की। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाता है। अन्नकूट उत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु मिलती है, दारिद्रय आदि का नाश होता है तथा मनुष्य सुखी रहता है। इस दिन गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके सम्मुख श्रीकृष्ण तथा गाय, ग्वाल बाल की रोली, चावल, फूल, तेल के दीपक से पूजा करते हैं। साथ ही एक और मान्यता है कि यशोदा जी श्रीकृष्ण को आठ पहर भोजन कराती थी, लेकिन इंद्र के कोप से ब्रज के लोगों को बचाने के लिए उन्होंने सात दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं किया।



आठवें दिन श्रीकृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा दिखाते हुए ब्रजवासियों और यशोदा मां ने सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से गुणा करके छप्पन व्यंजन का भोग उन्हें लगाया। इस छप्पन भोग में भात, दाल, प्रलेह (चटनी), दही शाक की कढ़ी, शरवत, फेनी, मालपुआ, रसगुल्ला, दही, लौंगपूरी, खुरमा, दलिया, मोठ, पापड़, सीरा, लस्सी, इलायची आदि कुल छप्पन व्यंजन कटु, तिक्त और अम्लीय होते हैं। यह उत्सव जहां हमारी पौराणिक मान्यता का प्रतीक है, वहीं पशु चेतना और उसके प्रति अनुराग और सम्मान का भाव भी दर्शाता है। संपूर्ण उत्तर भारत में यह अन्नकूट महोत्सव न केवल लोकप्रिय है, बल्कि अपनी माटी और पशु उत्पाद की महत्ता का प्रतीक भी है।