चौदह वर्षों के वनवास से अयोध्या लौटने की ख़ुशी में दीवाली

दीपक  भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है, क्योंकि वह भले मिट्टी का हो, मगर हमारे जीने का आदर्श है। दीपावली का प्रकाश लोगों को वर्ष भर अत्यधिक आनंद प्रदान करता है। इस आनंद का मूल स्रोत है ,दीपों के रूप में टिमटिमाते मिट्टी के दीए। त्रेतायुग, राम, लक्ष्मण , सीता जी के चौदह वर्षों का वनवास व्यतीत कर अयोध्या लौटे, तो उनके इस शुभागमन का सार्वजनिक कार्यक्रम अपूर्व दिवाली त्योहार में परिणत हो गया। स्वयं श्री राम प्रभु ने जम बैदेही, भातृगणों, बंधु-बांधवों और कुटवियों के साथ कार्तिक अमावस्या की काली रात में अयोध्या वासियों द्वारा जलाए गए लाखों दीयों के उजाले को देखा तो उन्होंने इस प्रकाश की प्रशंसा में अनेक बातें कहीं। लाखों दीयों के उस सामूहिक प्रकाश के बारे में श्री राम ने जो कुछ कहा, वह एक परम आध्यात्मिक विचार के स्वरूप में ढल गया। इन अनुभवों के साथ दीपावली मनाना मानव को पर्यावरण हितेषी भी बनाता है।


मिट्टी के दीप के प्रकाश से आलोकित परिवेश मनुष्य को सादगी, संतोष प्रदान करता है। इस वातावरण में मनुष्य निर्मम आधुनिकता और विलासिता से मुक्ति के विचार-बिंदु पर कुछ देर के लिए अवश्य स्थिर होता है। दुर्भाग्य से स्थिरता का यह बिंदु दीर्घकालिक नहीं हो पा रहा है। इसीलिए प्रकृति उखड़ी हुई है ,दिवाली का यह मर्म आज तक संवेदनशील मानवों के हदयों को सींच रहा है। निस्संदेह दीपावली के आधुनिक स्वरूप और आधुनिक हर्षोल्लास को तुलना त्रेतायुग मेंश्रीराम द्वारा दीयों के प्रकाश को देख अनुभूत किए गए हर्षोल्लास के साथ नहीं की जा सकती, परंतु हिंदू समाज द्वारा दीपोत्सव मनाने का ध्येय कहीं न कहीं त्रेतायुग के दिवाली मर्म तक पहुंचने का ही है। वस्तुतः दीपक प्रकाश का पर्याय है।


प्रकाश मनुष्य के भौतिक जीवन में तो आवश्यक है ही, साथ में मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन में भी प्रकाश पुंजों की टिमटिम मंद नहीं पड़नी चाहिए। मानव जीवन में सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है। सूर्य मानव प्रयास के बिना नभमंडल में प्रकट होता है और निश्चित समय पर अस्त भी होता है। सूर्यास्त के बाद उजाले के लिए मानव प्रयास के बाद जलने वाले दीप का महत्व भी कम नहीं। हालांकि आधुनिक युग में तो विद्युत क्रांति ने चारों ओर कृत्रिम प्रकाश की बहुतायत बढ़ा दी है, परंतु क प्रकाश मात्र हमारे आधुनिक जीवन के कार्यों उद्देश्यों को पूरा करने के काम में आता है। यह प्रकाश हमारे लिए आध्यात्मिक मार्ग तैयार नहीं करता। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की रुचि किसी मनुष्य में दिवाली त्योहार पर जलते मिट्टी के दीये ही उत्पन्न करते हैं।