उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत में उन्नीस हजार से अधिक भाषाएं मातृभाषा के रूप में इस्तेमाल हो रही हैं। आज हर स्कूली बच्चे को शिक्षा उसकी मातृभाषा में ही देने की जरूरत है। इससे न केवल सीखने की क्षमता विकसित होगी, बल्कि हमारी भाषाओं का संरक्षण भी संभव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश इतिहासकारों ने 1857 को कभी भी स्वतंत्रता के लिए पहला संघर्ष स्वीकार नहीं किया और इसे महज एक 'सिपाही विद्रोह के रूप में चित्रित करने की कोशिश की। भारत का शोषण करने के लिए अंग्रेजों के अपने स्वार्थ थे और इतिहास उनके लिए एक उपकरण बन गया था। उन्होंने कहा कि देश की शिक्षा प्रणाली से भारतीय संस्कृति और परंपरा झलकनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने इतिहासकारों से भारतीय संदर्भो और मूल्यों के साथ इतिहास लिखने का आह्वान किया।
स्कूली बच्चे को शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाए