एक शिक्षक जो खिलौनों के जरिए पढ़ा  रहे हैं विज्ञान का पाठ

विज्ञान उनके लिए बच्चों का खेल हैं  आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकेंगे  हाल ही महानगर कोलकाता में संपन्न हुए अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव 2019 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आए दीपक शर्मा के मैजिक विज्ञान को देख शहरवासी अचंभित हो गए। क्योंकि इनके खिलौने के खेल में विज्ञान का ज्ञान और भारत की समृद्ध दर्शन का सार ही उन्हें औरों से पृथक साइंस सिटी के हॉल संख्या दो के स्टॉल संख्या चार पर कांच की ग्लास,प्लास्टिक की गेंद व अन्य खिलौनों के साथ जब दीपक करतब दिखाते तो उसे देखने को भारी संख्या में बच्चों के साथ ही अन्य राज्यों से आए प्रतिनिधि भी वहां एकत्र हो जाते और खेल-खेल में ही दीपक खगोल विज्ञान से लेकर भौतिकी व रसायन तक को सरल व सहज तरीके से परिभाषित कर उनका ज्ञानवर्द्धन करते।  दीपक शर्मा पेशे से शिक्षक है और मौजूदा समय में मेरठ के एनएएस इंटर कॉलेज में विज्ञान विषय पढ़ाते हैं।


 विज्ञान पढ़ने और पढ़ाने का जुनून केवल कक्षा तक ही सीमित नहीं है। स्कूल से बाहर भी पिछले 34 सालों से विज्ञान की शिक्षा को नित्य नए प्रयोग कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने गणित और विज्ञान को जोड़ गीत लिखे और गीतों की प्रस्तुति इस कदर रही कि विद्यार्थी खुद-ब-खुद खींचे चले आए। बिग बॉस की लोकप्रियता को देख उनके मस्तिष्क में विज्ञान पर रियलिटी शो बनाने की इच्छा जागृत हुई। जिसे बिना समय गवाए तैयार किया। रियलिटी शो की तर्ज पर ही दस दिनों तक देश भर के विभिन्न शहरों से चुने गए बाल वैज्ञानिकों को चौबीसों घटे विज्ञान घर में रखा गया, जह्यं उन लोगों ने सामान्य कामकाज के साथ विज्ञान गुरु के निर्देश पर कई प्रोजेक्ट के टास्क पूरे किए।


उन्होंने बताया कि मेरठ में दो बार विज्ञान घर का आयोजन हो चुका है। विज्ञान घर के नए इनोवेशन से विज्ञान के शिक्षकों को सुखद अहसास कराया। अंक नहीं, अक्ल की जरूरत : बच्चों को स्कूल में बेहतर अंक हासिल हो इसके लिए उनके अभिभावक क्या कुछ नहीं करते। यहां तक की बाजार से प्रोजेक्ट तक खरीद लाते है और उसे स्कूल में पेश भी कर देते हैं।  माप डाली पृथी से सूर्य की दूरी: 8 जून, 2004 को दीपक ने वो कर दिखाया, जो दूसरों के लिए बेहद मुश्किल था।  विज्ञान की राह में अभाव कभी रोड़ा बन ही नहीं सकता है, क्योंकि विज्ञान हर चीज में निहित है। ऐसे में केवल आवश्यकता है कि हम समझदार बने। यदि पर्याप्त मात्रा में संसाधन है तो विज्ञान की शिक्षा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं अगर समूह में विज्ञान शोध हो तो काफी हद तक सामाजिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है और प्रयोगों में रोजगार की भी अपार संभावना है, मसलन चीजों को टोहने व समझने की जरूरत है।